सोमवार, 11 मार्च 2019

कविता : बन जाऊँ खिलाड़ी एक

" बन जाऊँ खिलाड़ी एक "

ख्वाइश थी मेरी एक,
कि बन जाऊँ खिलाड़ी एक |
पर मैं  न बन सका,
कोशिश करते करते थक चुका |
रोज़ सुबह जल्दी उठना,
फिर दो तीन किलोमीटर दौड़ना |
शरीर को न मिलता आराम,
हो गया था मैं बेकाम |
एक दिन ऐसा आया,
खिलाडी बनने का सपना भूल गया |
मैंने न सोची इसके बारे में,
जल सेना में जाना समझा ठीक |
ख्वाइश थी मेरी एक,
कि बन जाऊँ खिलाड़ी एक |



                                                                                                          कवि : कुलदीप कुमार , कक्षा : 7th , अपना घर

कवि परिचय : यह कविता अपना घर के छात्र कुलदीप कुमार के द्वारा लिखी गई है जो की मूल रूप से छत्तीसगढ़ के निवासी हैं | कुलदीप पढ़लिखकर जल सेना में भर्ती होना चाहते हैं | कवितायेँ लिखने के साथ ही साथ नृत्य करना भी बहुत पसंद है |

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें