शनिवार, 18 अगस्त 2018

कविता : ये जिंदगी फिर क्या जिंदगी है

" ये जिंदगी फिर क्या जिंदगी है "

मैंने एक देश में देखा ऐसा, 
जहाँ कानून को कर रहे थे 
लोग ऐसे को तैसा | 
हर कानून को तोड़ रहे थे , 
झूठ को सच साबित कर रहे थे | 
जात - पात के नाम पर लड़ रहे थे,  
एक दूसरे को कम नहीं समझते थे | 
हर जुल्म -अत्याचार कर रहे थे, 
अपने देख को ही बर्बाद, 
 करने पर तुले रहते है |  
अपने जिंदगी को जीने का,  
कोई लक्ष्य नहीं होता है |  
बस अपने आप को न समझ के,  
बराबर जिंदगी जिए जा रहे थे | 
ये जिंदगी फिर क्या जिंदगी है,  
जो बेमतलब की जिंदगी है | 

कवि : विक्रम कुमार ,  कक्षा : 8th ,  अपना घर 

                                                                                   

कवि परिचय : यह हैं विक्रम जो की बहुत ही अच्छे कविकार हैं और कविताएं भी बहुत ही अच्छे लिखते हैं | विक्रम बिहार के नवादा जिले के रहने वाले हैं और अपना घर  में रहकर  अपनी पढ़ाई कर  हैं | विक्रम को पढ़ाई करना बहुत अच्छा लगता है | 

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