शनिवार, 14 अक्टूबर 2017

कविता: नई किरण

 " नई किरण " 


निकला नया सूरज जब,
नई किरणे कमरे में आई तब | 
मैं तो यूँ ही सोया हुआ था, 
सपनों की दुनियाँ में खोया था | 
प्यारी से एक आवाज़ आई, 
लगता था कोई जगाने है आई | 
थोड़ी गुनगुनाहट सी आवाज़ आई, 
बिस्तर से कोई जगाने है आई | 
रेशम की डोरी नया  संदेशा लाई, 
प्रेम का धागा बांधने है आई | 

कवि : संतोष कुमार , कक्षा : 4th , अपनाघर 

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