शनिवार, 14 अक्टूबर 2017

कविता: माँ का प्यार

"  माँ का प्यार  "  

मन करता है मैं छोटा बन जाऊँ, 
माँ का प्यार दोबारा पाऊँ | 
उंगली पकड़कर चलना सिखाती, 
नया संसार की बात बताती | 
क ,ख ,ग पढ़ना सिखाती,
एक से बढ़कर सपने दिखती | 
इस प्यार की प्यासी सारी दुनिया,
माँ ने दुनियाँ को सहराया | 
वो छोटी सी भी मुस्कराहट तेरी, 
हर माँ को ख़ुशी रौशनी देती | 

कवि : सार्थक कुमार , कक्षा : 7th ,अपनाघर 

कवि परीचय : यह हैं सार्थक कुमार जो की बिहार राज्य से अपनाघर पढ़ने के लिए ए हुआ है | दौड़ लगाना बहुत पसंद हैं | पड़े में बहुत अच्छे हैं | 

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