मंगलवार, 5 जून 2012

कविता :- अँधेरा

कविता :- अँधेरा 
एक अँधेरे घर में....
एक दीपक का हुआ अविष्कार,
तभी आ एक उससे पत्थर टकराया....
प्रथ्वी ने एक जन्म सा पाया,
करोंडो वर्षों बाद हुआ....
इस संसार का अविष्कार,
आज कलयुग का मनुष्य....
प्रकति का कर रहा शिकार,
ऐसा ही अगर होता रहा....
तो नहीं रहेगी ये धरा,
नहीं रहेगा ये दीपक....
और छा जायेगा अँधेरा,
नाम : सोनू कुमार 
कक्षा : 11 
अपना घर  

1 टिप्पणी:

  1. सोनू, बहुत सुंदर लिखा है आपने.
    सही में यदि हम इसी तरह से प्रकृति पर अत्याचार करते रहेंगे तो अँधेरा तो छाना ही है.
    अतः हमें प्रकृति को बचाने की कोशिश करनी चाहिए.
    इसी तरह की रचनाएं लिखते रहिये.
    अच्छा लिखते हैं आप .

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