रविवार, 18 मार्च 2012

कविता : मौसम

 मौसम 

धूल,मिटटी,ककंड के संग ,
 ईंट,भट्टों के बीच गुजर रहा था जीवन......
ईंट की भट्टियां और भयानक गर्मी में,
बीता जा रहा था ये अपना बचपन......
धूल मिट्टी और कंकड़ के संग,
घुल मिल सा गया था ये मन .....
पड़ने का था शौक बहुत मुझे,
इस जीवन से न थी कोई आशा ......
सुबह-२ बच्चों को स्कूल जाते देख,
होती मन में बड़ी जिज्ञासा......
एक रोज है वो बात,
मैं कर रहा था भट्टेपर काम ......
तभी आयी एक खबर मेरे पास ,
पड़ने का था एक वो पैगाम.........      

लेखक : धर्मेन्द्र कुमार 
कक्षा : 9
अपना घर  
  
 

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