गुरुवार, 18 अगस्त 2011

काली रात

काली रात 
रात हुई सुबह .सुबह हुई शाम ,
शाम हो गयी काली रात ....
 छाया था चारो तरफ सन्नाठा,
 सन्नाठे के डर से मैं झाड़ियो के पीछे था बैठा......
सोच ही रहा कि कब होगा उजाला ,
तब तक पास वाली झाड़ी से एक खतरनाक  जानवर निकला.......
देखते ही देखते उन जानवरों ने ले लिया डेरा ,
मन ही मन कह रहा था कि  कब होगा सबेरा ........
 क्योंकि इन  जानवरों ने लगा लिया हैं डेरा ,
यदि मुझे देख लिया तो क्या होगा मेरा .......
कुछ ही देर में बन गया मानव  ,
एक ने कहाँ कि लोगो की सेवा करेगे हम मानव....... 
उनमे से एक आया मेरे पास ,
मैं डर के मारे हो गया उदास ........
उसने मुझे पकड़ा और सब के पास लाया,
मेरे बारे में  सबको उसने बताया ........
कहाँ कि यह हैं हमारे राजा  ,
हम हैं इनकी प्रजा .......
थोड़ी ही देर में बीती काली रात,
दोस्तों अब मेरी कविता हुई समाप्त......

लेख़क -आशीष कुमार
कक्षा - ९ अपना घर .कानपुर
 

2 टिप्‍पणियां:

  1. HAR RAAT KE BAAD SAVERA AATA HAI AUR DAAR KE AAGE JEET HAI YAHI HAME SHEKHATA HAI........THANKS, BAHUT ACCHA KAVITA LIKHNE KE LIY

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  2. हर काली रात के बाद एक सुखद सबेरा ज़रूर आता है... बहुत अच्छी लगी ये कविता..

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