शुक्रवार, 25 मार्च 2011

कविता - मंजिल अब दूर नहीं

 मंजिल अब दूर नहीं 
कदम से कदम बढ़ाओ डरो नहीं ,
जो सही था वही हैं सही ....
आज के गौरव हो तुम्ही ,
आगे बढ़ो" मंजिल अब दूर नहीं" .....
मंजिल तक पहुँचना हैं अगर ,
तो तय करनी पड़ेगी कठिन से कठिन डगर.....
रूकावटे डालेगे भ्रष्टाचार करने वाले ही ,
आगे बढ़ो "मंजिल अब दूर नहीं" .....
चाहे लाख करे कोई प्रयास ,
सिर पर पड़े भले ही ईंट या बाँस.....
ईंट का जवाब पत्थर  से देना नहीं ,
आगे बढ़ो "मंजिल अब दूर नहीं" ....
हाथ से हाथ मिलाते रहना ,
अपने कदमों को डगमगाने न देना.....
अब जो डरा समझा वह बचा नहीं ,
आगे बढ़ो "मंजिल अब दूर नहीं" ....
लेखक - आशीष कुमार 
कक्षा - ८ अपना घर , कानपुर

3 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर और प्रेरक रचना..

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  2. बहुत सुन्दर**** सिर पर पड़े भले ही ईंट या बाँस.....
    ईंट का जवाब पत्थर से देना नहीं ,
    आगे बढ़ो "मंजिल अब दूर नहीं" ....
    हाथ से हाथ मिलाते रहना ,
    अपने कदमों को डगमगाने न देना.....
    अब जो डरा समझा वह बचा नहीं ,
    आगे बढ़ो "मंजिल अब दूर नहीं" ....

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