बुधवार, 2 मार्च 2011

कविता : रहे न बदन में लत्ता

रहे न बदन में लत्ता 
पूरब से निकला सूरज ,
पश्चिम को जाता है ....
मध्य में जब वह आता है ,
ऐसी रोशनी फैलाता है ....
हर मानव छाया में जाता है ,
क्योंकि उस समय ऐसा लगता है .....
जैसे बदन मानव का जलता है ,
क्योंकि बदन में न होता लत्ता है .....
पूरब से निकला सूरज ,
पश्चिम को जाता है  ......

लेखक :अशोक कुमार , कक्षा: 8 ,अपना घर 

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