कानपूर में 280 ईट भठ्ठें है. जंहा पर बिहार, छत्तीसगढ़, झारखण्ड, और उत्तर प्रदेश के प्रवासी मजदूर काम करते है जिसमे से ज्यादतर अभी भी बंधुआ मजदूर है. इन्हीं ईट - भठ्ठा प्रवासी मजदूरों के बच्चों के लिए जाग्रति बाल विकास समिति द्वारा इन भठ्ठों पर स्कूल चलाया जा रहा है जिसे बच्चे प्यार से "अपना स्कूल" कहते है. ईट-भठ्ठों पर हजारो बच्चों का बचपन और सपने काम के बोझ तले सदियों से दम तोड़ते आ रहे है . "अपना स्कूल" उन दम तोड़ते बचपन और सपनो को जिन्दा रखने के साथ-साथ उन्हें फिर से जीने की परिवेश और अवसर देता है... बच्चे "अपना स्कूल" में आकर अपने बिखरते सपनो को सजाते है और उनमे नए रंग भरते है. प्यार, ख़ुशी, हंसी, शरारत, मजे, खेल गाना - बजाना और खाना इनके बीच होती है पढाई भी, इसी लिए शायद प्यार से कहते है बच्चे इसे अपना स्कूल.... एक छोटी सी फिल्म इस खुशियों के स्कूल की .....
Mahesh , Kanpur
बहुत अच्छा लगा ’अपना घर’ का यह प्रयास...ऐसे ही प्रयास की देश के अन्य क्षेत्रों को जरुरत है. शुभकामनाएँ.
जवाब देंहटाएंवाह! बहुत अच्छा प्रयास है...
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रयास, हार्दिक शुभकामनाएं।
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