इस भूमि के हर किनारे से ,
देखो इस आकाश को ....
कहीं काला कहीं सफेद ,
क्यों है इसका येसा रंग ....
क्या किसी ने सोचा है ,
उसको पास से देखा है ....
नहीं किसी ने उसको समझा ,
पत्थर है या भांग का गोला ....
पता नहीं कब हो जाए ओ साफ ,
जिससे मानव का हो जाए भ्रम खत्म ....
फिर वह न देखे आकाश में ,
काले-सफेद जैसे दाग ....
लेख़क :अशोक कुमार
कक्षा :8
अपना घर
कक्षा :8
अपना घर
बहुत अच्छी कविता है... बहुत खूब!
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