मंगलवार, 20 जुलाई 2010

कविता: फैला दी अपनी लालिमा

फैला दी अपनी लालिमा

जग -मग जग-मग उगता सूरज ,
लेकर अपनी लाली मूरत....
तब पृथ्वी पर आती है छाया,
पृथ्वी पर फैला दी माया....
लाकर अपनी घन घोर छाया ,
चू -चू चिड़िया चह चहा रही है.....
लगता है जंगल में गाना गा रही है,
पेड़ पौधे सब मगन हो गये है.......
लगता है जंगल में बिस्तर डालकर सो गये,
मंद-मंद हवा बह रही है ......
कल- कल करके नदियाँ गीत गा रही है,
अपने उमंग में बही चली जा रही है......
जैसा लगता है शीतकाल आ गया हो,
वनस्पतियों को देखकर भविष्यकाल याद आ गया हो.....
जग -मग जग -मग उगता सूरज,
लेकर अपनी लाली मूरत.....
लेखक: मुकेश कुमार, कक्षा , अपना घर, कानपुर

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें