बुधवार, 21 जुलाई 2010

कविता :लूट का शोर मचा

लूट का शोर मचा

शोर मचा भाई शोर मचा
इस जंगल में शोर मचा
चोर आयें हैं माल लूटनें
नेता जी आयें हैं वोट लूटनें
चोर ढूंढे माल कहाँ है
नेता ढूंढे इंसान कहाँ है
चोर ने लूटा बंदूक दिखाकर
नेता ने वोट लूटे धमकी देकर
चोरों के खिलाफ जो भी बोला
समझो उसकी तिजोरी का टूटा ताला
जिसने न दिया नेता जी को वोट
नेता जी ने पहुंचाई उनको गहरी चोट

लेखक :आशीष कुमार
कक्षा :
अपना घर

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