रविवार, 20 जून 2010

कविता :पेड़ पर नहीं रहा बकला

पेड़ पर नहीं रहा बकला

एक पेड़ में डालें चार ,
उस पर पत्ती लगीं बीस हजार ....
आधी पत्ती थीं हरी ,
बाकीं थीं जरी-जरी ....
एक दिन हवा आयी जोर से ,
जरी पत्ती गिरीं उस पेड़ से ....
अब पत्ती बचीं दस हजार ,
उन पर कीड़े लगे तीस हजार ....
खा गये पत्ती कर दिया खोखला ,
पेड़ में न बचा एक भी बकला ....

लेखक :आशीष कुमार
कक्षा :८
अपना घर

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