सोमवार, 21 जून 2010

कविता :सर्दी

सर्दी

अब तो घर से निकलेगा जो भी ।
ठण्ड से सिकुड़ जाएगा वो भी ॥
पड़ रही है ये कितनी सर्दी ।
जैसे पहन कर आई हो ठण्ड की वर्दी ॥
जब निकलती है ये धूप सुहानी ।
हो जाती है तब सबकी मनमानी ॥
सूर्य की गर्मी से जब गर्माहट पाते ।
तब कुछ कर हम है पाते ॥
रात में रजाई में घुसकर ।
सो जाते हैं उसमें छुपकर ॥
पड़ रही है ये कड़ाके की सर्दी ।
जैसे पहनकर आई हो ठण्ड की वर्दी ॥

लेखक :धर्मेन्द्र कुमार
कक्षा :
अपना घर

5 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत बढ़िया..धरमेन्द्र! शाबास!

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  2. भाई इस भीषण गर्मी में आपको सर्दी की कविता कैसे सूझी ,
    कविता अच्छी है

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  3. क्‍या सर्दी पड रही वाह धमैन्‍द्र जी वाह

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  4. सर्दी सदी क्‍या करते हो सर्दी कि‍सी को खाती है
    ओढ रजाई सो जाने से सर्दी दुर भाग जाती है


    gunesh rathore lunawa

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  5. क्‍या सर्दी पड रही वाह धमैन्‍द्र जी वाह

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