शनिवार, 17 अप्रैल 2010

कविता: आदमी कहलाने लायक नहीं हूँ

मै एक आदमी हूँ ......

मै एक आदमी हूँ,
लेकिन आदमी कहलाने लायक नहीं हूँ
मेरे पास दिमाग है,
लेकिन वह बेकार है।
उन्नति तो हमने बहुँत किया,
मगर समाज को कुछ दिया।
इस हरी भरी दुनिया को,
छिन्न - भिन्न कर गया।
एक दिन ऐसा आएगा,
दुनिया खत्म हो जायेगा।
इसका कारण एक है,
किन्तु वह अनेक है।
दो हाथो दो पैरो वाला है,
खोज-बीन करने वाला है।
दुनिया में पता नहीं क्या क्या बनाया,
इस पूरी धरती पर प्रदूषण फैलाया।
जिस मिटटी में हम पैदा हुए,
उसी को हम सब लूट लिए।
इन्सान से अच्छा जानवर है,
प्रकृति के हरदम साथ है।
अच्छा भोजन खाता है,
अपनी बात फरमाता है।
जंगल जमीन में रहता है,
जंगल का साथ निभाता है।
मै एक आदमी हूँ ,
लेकिन अपने आप पर शर्मिंदा हूँ

लेखक: मुकेश कुमार, कक्षा ८, अपना घर




2 टिप्‍पणियां:

  1. बच्चे ही इस दुनिया का भविष्य हैं. आपसे उम्मीदें हैं. आप इस बहुत सुन्दर बनाना.

    दुनिया खत्म हो जायेगा। ( इसे जग खत्म हो जायेगा- कहोगे तो अच्छा लगेगा क्योंकि दुनिया के साथ खत्म हो जायेगी लिखना पड़ता है न!! )

    बस, समझाने के लिए लिखा है वैसे कविता बहुत अच्छी लिखी है, शाबास!

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