बुधवार, 31 मार्च 2010

कविता बन्दर

बन्दर
मैं हूँ बन्दर मैं हूँ बन्दर,
मैं हूँ भूरा और सफेद बन्दर...
अपनी पूंछ हिलाता हूँ,
खों खों खों खों करता हूँ.....
इस दर से उस डाल पर जाता हूँ,
पडों मे गुजारा करता हूँ .....
जब मैं बगीचे में जाता हूँ,
अज के पेड़ पर चढ़ जाता हूँ......
कच्चे फल नीचे तोड़ के देता हूँ,
पके हुये फल मै खा जाता हूँ......
आशीष कुमार कक्षा ७ अपना घर कानपुर

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