शनिवार, 6 फ़रवरी 2010

कविता: गंगा बचाओ

गंगा बचाओ
गंगा बचाओ गंगा बचाओ ।
सदा साफ उसको दिखलाओ ॥
गंगा को प्रदूषित न करो भइया ।
गंगा हमारी रास्ट्रीय नदी है ॥
गंगा में में कूड़ा करकट न फेको ।
गंगा बचाओ गंगा बचाओ ॥
गंगा में सारे जीव जन्तु रहते हैं ।
गंगा में फैक्ट्री का गंदा पानी न गिराओ ॥

लेखक चन्दन, कक्षा , अपना घर

3 टिप्‍पणियां:

  1. acha laga pad kar

    amrit'wani'
    http://kavyakalash.blogspot.com/

    आओ
    आज से तुम और हम मिल कर
    हर रोज
    शिवलिंग पर दूध चढ़ाएं
    और कहें
    तुमने पानी की गंगा बहाई
    ठीक है
    उस युग में
    शायद
    इसी की जरूरत रही होगी
    किंतु हे भोले शंकर !
    सभी प्रकार के भक्तों की ओर से
    शिवलिंगों पर दूध की प्रतिदिन ऐसी धारा बहे
    कुछ दूध आप अपनी ओर से मिलाके
    वक्त की मांग के मुताबिक
    कलियुग में इसी गंगा को
    दूध की गंगा बनादो
    घर-घर में
    घी-दूध की गंगा बहादो ।

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  2. पहले की पीढ़ी तो नाश् कर गई। चन्दन और उनके साथ के बच्चों से ही उम्मीद है, गंगा बचाने की।

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  3. bahut bahut acha laga chandan es kavita ko padhkar,ab es par amal karne ka bakat aa gaya hai...thanks

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