बुधवार, 18 नवंबर 2009

कविता: उत्तक

उत्तक

कोशिका से उत्तक बनता है,
जो करते है अंगो का गठन....
अंगों से से बनता है अंग - तंत्र,
सभी मिल करते शरीर का गठन....
संयोजी उत्तक सब अंगों का,
जोड़ कर देता है सहारा....
उत्तक से उत्तक को जोड़ता,
आपस में अंग जोड़ते हमारा....
सभी ऊतक ही अस्थिया है,
जो
शरीर को देती ढांचा है ....
अधिक कठोर होती है ये,
कंकाल खड़ा कर देती है....
पेशी उत्तक शरीर को,
गति प्रदान है करता....
ह्रदय हमारा बिना थके चलता रहता,
जीवन भर हर पल धड़कता रहता....


लेखक: धर्मेन्द्र कुमार, कक्षा ७, अपना घर....

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