बुधवार, 18 नवंबर 2009

सम्पादकीय

सम्पादकीय
हमारा "बाल सजग" अच्छे से चल रहा है, और आगे बढ़ते जा रहा है। जिस तरह से एक पौधे का बीज अंकुरित होकर विकसित होत है... आज देश में प्रद्योगकी के साथ साथ बेरोजगारी भी बढ़ती जा रही है, इसका मुख्य दोष हमारी शिक्षा का तरीका है । क्योकि एक मजदूर का बच्चा एक प्राइवेट स्कूल का फीस नही दे सकता है, क्योकि मजदूर की एक दिन की मजदूरी लगभग १०० रुपए है। इसी सौ रुपये में वो दिन का रासन और अन्य सामान लाताहै। मजदूर का ८० रूपये रासन में खर्च होता है॥ उसके पास प्रति दिन २० रुपये बचता है जिसमे में वो बीमार पड़ने पर दवा, पहनने का कपड़ा आदि में खर्च करता है .... सौ रुपये उसके गुजारे के लिए भी कम पड़ता है तब वो कर्ज लेता है और कर्ज को चुकाने में पूरी उम्र ठेकेदार के यंहा गुलामी करता है... वो अपने बच्चों को चाहकर भी अच्छे स्कूल में नही पढ़ा पता है.... एक इंजिनियर की तनख्वाह करीब २०,००० रूपये होती है ... उसमें वो महीने में ८ हजार खाने और रहने में 2 हज़ार में दवा और अन्य खर्च करता है तब भी उसके पास १० हज़ार रुपये बचता है जिसमें वो अपने बच्चे को २ हज़ार रूपये महीना फीस देकर अच्छे से अच्छे से स्कूल में पढ़ता है... और उसके बाद अपनी बचत में बाकि पैसे इकठ्ठा करके भविष्य के लिए निश्चित रहता है. हमरे देश के हम जैसे गरीब आदमी का बच्चा अच्छे स्कूल में नही पढ़ पाता अपनी परिस्थितियों के कारण और देश में सबको एक जैसा स्कूल न होने के कारण अमीर का बच्चा इसलिए पढ़ जाता है क्योकि उसके पास हर चीज की सुविधा होती है.....हम मजदूरों के बच्चे भी पढ़ना चाहते है लिखना चाहते है कंप्यूटर चलाना चाहते है...इस देश को अच्छा बनाना चाहते है...मगर हमें मौका ही नही मिलता है....

"संपादक"
अशोक
कुमार,
कक्षा ७, अपना घर

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