बुधवार, 29 जुलाई 2009

कविता: कालू बन्दर

कालू बन्दर

एक था कालू बन्दर,
रहता था नाले के अन्दर...
एक दिन खा रहा था चुकंदर,
मस्ती में था नाले के अन्दर...
उतने में एक सांप आया,
उसने अपना फन जो उठाया...
बन्दर जी की घिघ्घी बन गई,
हालत उनकी पतली हो गई...
कालू बन्दर भागे अन्दर,
उनके हाथ से गिरा चुकंदर...
आगे मिल गई नागिन रानी,
बोली बन्दर भैया पीलो पानी...
कालू बन्दर नाले से भागे,
पेड़ पर चढ़ कर जम के हाफें...
याद गई बन्दर को नानी,
खत्म हो गई अपनी कहानी...

लेखक: मुकेश, कक्षा ८, अपना घर

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