शुक्रवार, 31 जुलाई 2009

कविता: मोटा-मोटी

मोटा-मोटी

एक था मोटा, एक थी मोटी,
खाते थे, दोनों दस-दस रोटी।
एक दिन उनके घर आए मेहमान,
बोले लगी है भूख कराओ खान-पान।
मोटी थी बड़ी आलसी और खोटी,
बोली घर में बनी नही है रोटी।
चट से बोली आटा रखा है घर में,
झट से पका लो रोटी चूल्हे में।
अभी नींद लगी है, इसलिए मुझे है सोना,
पक जाए अगर रोटी, तो मुझे जगा देना।
लेखक: आदित्य कुमार, कक्षा ७, अपना घर

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