रविवार, 14 जून 2009

कविता: चारो ही गए गंजे

चारो हो गए गंजा
चार थे पण्डे।
खाते थे रोज अंडे॥
चारो गए स्कूल।
स्कूल में की शैतानी॥
टीचर को हो गई हैरानी।
टीचर ने मारा दो - दो अंडा॥
चारो के मुंह से निकल पड़ा अंडा।
फ़िर चारो गए पंजाब॥
पंजाब में बिल्ली ने मारा पंजा
चारो का सर हो गया गंजा
कविता: चंदन कुमार, कक्षा , अपना घर

2 टिप्‍पणियां:

  1. सुन्दर कविता लिखी है।बधाई

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  2. टीचर ने मारा दो - दो अंडा॥
    चारो के मुंह से निकल पड़ा अंडा।
    फ़िर चारो गए पंजाब॥
    पंजाब में बिल्ली ने मारा पंजा।
    चारो का सर हो गया गंजा॥

    वाह चन्दन जी की तुकबंदी पढ़ कर मजा आ गया ..बढ़िया कविता .
    हेमंत कुमार

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