मंगलवार, 23 जुलाई 2024

कविता :"बारिश "

"बारिश "
बारिश का आहार था,
चमकती सी धूप बरकरार था | 
बाहर जाने का करता न मन ,
ये गर्मी भी कर रही है तंग | 
अकेले नहीं वो है सूरज के संग ,
कभी बादल वर्षा देता | 
तो कभी अपना रूप दिखा देता ,
हवा के बदलाव से बदल जाता मौसम | 
टाइम- तो- टाइम बूँद भी गिरा जाता ,
रूठे हुए पौधों को उठा जाता | 
कवि :अजय कुमार ,कक्षा :10th 
अपना घर 

 

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