बुधवार, 29 मई 2024

कविता :"एक चाह"

"एक चाह"
ठुकरा दिए सारे नाते इस जंहा से ,
छोड़ दिए हर ख्वाब को राह में |
 मुछत से थी जो चाह इस दिल में , 
वो भी छूट गई कंही अँधेरी राह में | 
अब डर क्या और खौफ क्या ,
सब छुप गए गहराई के समुन्दर में | 
बस रोना ही था इस जिंदगी में ,
वो भी छूट गए कंही अँधेरी राह में | 
आंसूओ ने भी छोड़ दिया साथ उसका ,
जीने की भी न रही आस उसकी | 
कोई मौका सफल न रहे ,
बस बर्बाद रहा समय उसका | 
कवि :साहिल कुमार ,कक्षा 8th 
अपना घर 

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