मंगलवार, 30 अप्रैल 2024

कविता:"वक्त"

"वक्त"
वक्त के साथ -साथ इंसान भी बदल जाता है ,
गरीब को सहारा देना | 
कोई नजर ही कान्हा आता है  , 
मरते गिड़गिड़ाते दूप में तपते| 
है वो नादान मानव ,
मगर सब नजरअंदाज कर देते है | 
जैसे कोई दानव ,
वो गरीब बच्चा दिन भर रोता है | 
मगर हर बुरे इंसान के पास भी,
अच्छा दिल होता है| 
आज कल दौलत ही सब कुछ बन गया है ,
यही पर उनका वक्त ही थम गया है | 
कवि :मंगल कुमार , कक्षा :8th 
अपना घर 


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