गुरुवार, 20 जनवरी 2022

कविता : "काश मेरा वह वक्त बदल जाये "

"काश मेरा वह वक्त बदल जाये "

काश मेरा वह वक्त बदल जाये | 

 शदियों से बन्दी जंजीर की ताला फीसल जाये ,

मैं आजाद हो जाऊगा | 

काश इस जिंदगी में कोई नई मोड़ आ जाये ,

पेरान रात्रि में जहाँ कोई न हो  | 

पेड़ शांत हो , आसमा में चद्रमा खोई हुई हो ,

बस मुझे उस पथ पर रौशनी दिखा जाये  | 

काश मेरा वक्त बदल जाये ,

इस मजबूर वाणी  , बनजर प्राणी में | 

कही से पानी आ जाये ,

फैल जायेंगी सारे जहाँ | 

सवर जाये वह पेड़ , खिल जायेगे वह फूल ,

काश इसका वह वक्त  आ जाये | 

कवि : विक्रम कुमार , कक्षा : 11th 

अपना घर

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