" आओ तुम्हे सपनो के गलियों की सैर कराऊँगा"
कुछ बातें आओ मै तुमको सुनाता हूँ |
इस सुनसान में नहीं आओ ,
तुम्हे सपनो के दुनिया में ले जाता हूँ |
चाँद -तारे के गलियारों में तुम्हे घुमाउँगा ,
अगर वक्त बचे तो सूरज के घर भी ले जाउँगा |
तितलियोँ से मिलाकर उनसे बाते करवाउँगा ,
रैंबो को बहका कर उसके रंग चुरा लाऊंगा |
फूल के पंखुड़ियों से नाव बना कर ,
तुम्हे उस छोर ले जाऊंगा |
ये बात मैं सबको बताऊंगा ,
आओ तुम्हे सपनो के गलियों की सैर कराऊँगा |
कवि : प्रांजुल कुमार , कक्षा : 12th
अपना घर
आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (12-01-2022) को चर्चा मंच "सन्त विवेकानन्द" जन्म दिवस पर विशेष (चर्चा अंक-4307) पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
वाह!!!
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर सपनों का घर
लाजवाब।
वाह, बहुत अच्छे!
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