"वह बचपन की बातें "
वह बचपन की बातें |
अब मुझे बहुत कुछ कहते है ,
वह खेत खलिहान में गुजरे हुए पल |
दोस्तों के संग खूब किया मौज मस्ती ,
आज उन सबकी याद आते है |
माँ की हाथो से खाना खाते ,
नींद लगे तो गोद में सो जाते |
वह बचपन की बातें ,
अब मुझे बहुत कुछ कहते है |
नदी हो या तालाब में खूब नहाया करते ,
पिता जी के हाथो से मार खाते |
वह बचपन की बातें ,
कवि : सार्थक कुमार
अपना घर
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें