सोमवार, 30 अगस्त 2021

कविता : "वह बचपन की बातें "

"वह बचपन की बातें "

वह बचपन की बातें | 

अब मुझे बहुत कुछ कहते है ,

वह खेत खलिहान में गुजरे हुए पल |

दोस्तों के संग खूब किया मौज मस्ती ,

आज उन सबकी याद आते है | 

माँ की हाथो से खाना खाते ,

नींद लगे तो गोद में सो जाते | 

वह बचपन की बातें ,

अब मुझे बहुत कुछ कहते है | 

नदी हो या तालाब में खूब नहाया करते ,

पिता जी के हाथो से मार खाते | 

वह बचपन की  बातें , 

कवि : सार्थक कुमार 

अपना घर

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