रविवार, 6 जून 2021

कविता : "जब हम नाराज़ होते है "

"जब हम नाराज़ होते है "

हर रास्ते गलत दिखती है | 

हर बात तीखी लगती है ,

हर चीजे बेकार होते है | 

जब हम नाराज़ होते है ,

कोई समझाए तो| 

हमे समझ नहीं आता,

रिस्ते और दोस्ती | 

शत्रु है बन जाता ,

हर बात पर दूसरो दोषी ठहराते है | 

जब हम नाराज होते है ,

रोटी अच्छी नहीं लगती है| 

चावल पक्का नहीं लगता है,

माँ का हाथो का खाना |

भी गले में अटक जाता है,

मन पसंद मिठाई भी | 

पीका पड़जाता है ,

हर चीजों से मुँह बनाकर | 

बैठ जाते है ,

जब हम नाराज होते है | 

कवि : देवराज कुमार , कक्षा : 11 

 अपना घर

 


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