सोमवार, 21 जून 2021

कविता : "जीओ खुलकर जीओ "

"जीओ खुलकर जीओ "

 जीने में  क्या बुराई हैं | 

 चाहें हम जैसे जीए ,

पर जीना तो हम सब को | 

चाहें खुश हो के जीए ,

और चाहें दुखी हो के जीए | 

जीना तो हर हाल में हैं ,

ऐसे जीने से क्या फायदा | 

जिसमे कोई मज़ा ही नहीं ,

जीओ तुम खुलकर जीओ | 

बिना डर के , बिना शर्म के ,

जीओ खुलकर जीओ | 

चाहें भले कितनी रुकावटें आए |

हमेशा तुम खुश हो के जीओ ,

कवि : नितीश कुमार ,कक्षा :11 

अपना घर

 

 

 

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