बुधवार, 21 अप्रैल 2021

कविता "सूरज की चंचल किरणे"

 "सूरज की चंचल किरणे"

सूरज की चंचल किरणे,

टहक  - टहक कर उठती है| 

पेड़ो की बधियो से वो ,

धरती पर  छन कर गिरती है | 

 सूरज की चंचल किरणे ,

टहक  - टहक कर उठती है | 

यहाँ -  वहां वो अपने संग ,

नई उमंग किरणों को  |

दुनिया में  फैलाती है  ,

सूरज की चंचल किरणे |

टहक  - टहक कर उठती है ,

पेड़ो की बधियो से वो |

धरती पर  छन कर गिरती है 

कवि : सनी कुमार कक्षा : 10th, अपना घर

 

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