शुक्रवार, 19 मार्च 2021

कविता : बदला नहीं बचपन

 " बदला नहीं  बचपन " 

 बदल रही है वो सुनशान सी गालियाँ ,

 बदल रही है वो पेड़ों की कलियाँ | 

बदल रहा है अब वो अवतार ,

बदल रहा है अब घर और द्वार | 

बदला नहीं है बस वो मुस्कुराहटें,

बचपन की मीठी - मीठी फुसफुसाहटें | 

बदल  चुकी है चप्पल के नंबर,

बदल चुका है वस्त्र और अम्बर | 

बदल गया है गलों का वो काजल,

बदल  गया है माथे का वो चन्दन | 

बदला नहीं तो वो मन का दुलार,

बचपन से अभी तक का ढेरों प्यार | 

 

बदल रही है हर साल वो किताबें,

बदल रही है वो धीरे चलती कदमें | 

बदल रहे है दोस्त और साथी,

बदल रहे है पेन और कॉपी | 

बदला नहीं वो बस जुनूनी पढाई,

भूला नहीं वो बचपन की लड़ाई | 

 कवि ; प्रांजुल कुमार , कक्षा : 11th ,  अपना घर

 

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