बुधवार, 17 मार्च 2021

कविता:- बचपन

  "बचपन"
बदल रहीं हैं वो सुनसान गलियाँ।
बदल रही है पेड़ों की कलियाँ।।
बदल रही है अब अवतार।
बदल रहा है घर और द्वार।।
बदला नहीं है बस वो मुस्कुराहटे।
बचपन की मीठी-मीठी फुसफुसाहटे।।
बदल चुकीं हैं चप्पल के नम्बर।
बदल चुका है वस्त्र और अम्बर।।
बदल गया है गालो का काजल।
बदल गया है माथे का चन्दन।।
बदला नहीं तो वो माँ का दुलार।
बचपन से  अभी तक का प्यार।।
बदल रही है हर साल टेक्स्ट बुक के पन्ने।
बदल गए वो धीरे कदमें।।
बदल रहे दोस्त और साथी।
बदल रहें अब पेन और कॉपी।।
बदला नहीं वो बस जुनूनी पढ़ाई।
बदला नहीं वो बचपन की लड़ाई।।
   कविः -प्रांजुल कुमार ,कक्षा -11th ,अपना घर ,कानपुर ,

कवि परिचय :- यह हैं प्रांजुल जो की छत्तीसगढ़ के रहने वाले हैं और कानपुर के अपना घर नामक संस्था में रहकर अपनी पढाई कर रहे हैं।  प्रांजुल को कवितायेँ लिखने का बहुत शौक है।  प्रांजुल पढ़कर एक इंजीनियर बनना चाहते हैं और फिर इंजीनियर बनकर समाज के अच्छे कामों में हाथ बटाना चाहता हैं। प्रांजुल को बच्चों को पढ़ाना बहुत अच्छा लगता है।

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