शुक्रवार, 5 फ़रवरी 2021

कविता:- खेल खिलौने बाजार के

 "खेल खिलौने बाजार के"
खेल खिलौने बाजार के।
 हो गए अब हजार के।।
कैसे मै अब खेलूँगा।
अब बस माँ के सामने रो लूंगा।। 
जिद एक भी ना उनसे करूँगा।
कि खेले बिना मै ना रहूँगा।।
माँ मेरे लिए आसमान से। 
चाँद तारे उतार दे।। 
उनसे अब मै खेलूंगा। 
अब जिद मै ना करूँगा।। 
कविः- नवलेश कुमार, कक्षा -6th, अपना घर, कानपुर,
 

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