"आज मै घर से बाहर निकला हूँ"
आज मै घर से बाहर निकला हूँ।
अपने मंजिल की तलाश में।।
ना कोई अपना है यहाँ।
और ना ही कोई घर ठिकाना ।।
बस हम यूहीं चलते जा रहें हैं।
कब तक चलना है ये तो पता नहीं ।।
घर द्वार छोड़कर मै आया हूँ।
अपने उस मंजिल को पाने ।।
रुक अब सकता नहीं।
और न ही मुँह मोड़ सकता हूँ ।।
बस मै आपने लक्ष्य की खोज में।
रुकना तो चाहता हूँ मगर।।
पर मै रुक नहीं सकता।
कठिन डगर की मेहनत से।।
मुख मोड़ नहीं सकता।
कविः- नितीश कुमार, कक्षा -10th ,अपना घर, कानपुर,
वाह! बहुत सुंदर!!!
जवाब देंहटाएंऐसे ही लिखते रहें!
जवाब देंहटाएंDhanyavad aap sabhi ko
जवाब देंहटाएंबढिया है!
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