गुरुवार, 21 जनवरी 2021

कविता:- हाथ पाँव हमारे काँप रहे हैं

 "हाथ पाँव हमारे काँप रहे हैं"
हाथ पाँव हमारे काँप रहें हैं।
  अब हर जगह आग तप रहें हैं।। 
स्वेटर टोपी मोजा पहने।
अब कहीं घूमने न निकलें।।
सर सर ठंडी हवा का झोका।
चलते-चलते कहीं उड़ जायें न टोपा।।
अपने को बचाना पड़ जाता है मुश्किल।
जम गए हैं दुनियाँ  के सारे झील।।
कट-कट की आवाज निकल रही है। 
शर्दी में दाँत-दाँत को काट रही हैं।।
हाथ पाँव हमारे काँप रहें हैं। 
अब हर जगह आग ताप रहें हैं।।
कविः- कुलदीप कुमार, कक्षा -9th, अपना घर, कानपुर,
 

कवि परिचय : यह हैं कुलदीप कुमार जो की छत्तीसगढ़ के रहने वाले हैं।  कुलदीप पढ़ाई में बहुत अच्छे हैं।  कुलदीप एक नेवी ऑफिसर बनना चाहते हैं।  कुलदीप अपनी कविताओं से लोगों को जागरूक करने की कोशिश करते हैं।  इनको  क्रिकेट खेलना पसंद है
 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें