"शर्दी का मौसम है लाजवाब"
शर्दी का मौसम है लाजवाब।
मै बैठा धूप में सूर्य को ताप।।
रोज सुबह नहाना लगता है बेकार।
ठण्ड से हो जाता मेरा शारीर बेजान
दाँत मेरे किट -किटाते रहते।
जबकि बैठा मै सूरज के नीचे।।
आग जलाओ तो राहत मिलती।
बाहर घूमो तो शर्दी लगती।।
छींक -छींक कर सब हो जाते परेशान।
ओढ़े बैठे सब कमबल तान।।
शर्दी का मौसम है लाजवाब।
मै बैठा धूप में सूर्य को ताप।।
कविः - कुलदीप कुमार, कक्षा -9th ,अपना घर, कानपुर,
कवि परिचय : यह हैं कुलदीप कुमार जो की छत्तीसगढ़ के रहने वाले हैं।
कुलदीप पढ़ाई में बहुत अच्छे हैं। कुलदीप एक नेवी ऑफिसर बनना चाहते हैं।
कुलदीप अपनी कविताओं से लोगों को जागरूक करने की कोशिश करते हैं। इनको
क्रिकेट खेलना पसंद है।
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