रविवार, 13 सितंबर 2020

कविता : खोया हूँ इस जहाँ पर

" इस जहाँ पर खोया हूँ "

 खोया हूँ इस जहाँ पर ,

चाँद- तारो के  पास | 

सूरज की रोशनी जैसे ,

लगते है तारे मिटमिटाते हुए | 

तारो की रोशनी देती राहत ,

सपने की दुनिया में न होती आहट  | 

खो जाता हूँ उस दुनिया में ,

सो जाता हूँ फूलो की कलियों में | 

खोया हूँ इस जहाँ पर ,

चाँद- तारो के पास | 


कवि  : महेश कुमार ,कक्षा : 6th ,अपना घर

 

 

 

 

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