सोमवार, 8 जून 2020

कविता : मेरा बचपना

" मेरा बचपना " 

तीन साल पहले मैं कितना छोटा था,
अब मैं बस बढ़ चला हूँ | 
मेरी आज़ादी अब छीनने लगी है,
मेरी जिंदगी  बदलने लगी है | 
पहले मैं आज़ादी से घुमा करता था,
बिना बेवजह शैतानियां किया करता था | 
न मुझे डर था और न मुझे था भय,
मुझे ही करना पड़ता था काम तय | 
बड़े होने पर बचपना छीन गया,
जो भी था सब चला गया | 
शायद वह दिन फिर से आए,
मेरा बचपना काश लौट कर आए | 

कवि : अपतर अली , कक्षा : 3rd , अपना घर

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