रविवार, 14 जून 2020

कविता : लॉकडाउन

" लॉकडाउन "

लॉकडाउन का फिर से है चान्स,
कोई नहीं खा रहा मुर्गा ,मांस | 
गाय , भैस तो खा रहे हैं घास,
इंसा संक्रमित हो रहे कोरोना के साथ | 
दुनिया में बीमारी फैली हज़ारो लाख,
कई लोगों की ले ली गई जान | 
गाड़ियाँ बंद हो गई है शहरों की,
तकलीफें बढ़ रहीं है इंसानों की | 
ख़त्म हो रही इच्छा जीने की,
भर रही है झोली कोरोना वायरस की | 
लॉकडाउन का फिर से है चान्स,
कोई नहीं खा रहा मुर्गा ,मांस | 

कवि : नवलेश कुमार कक्षा : 6th , अपना घर 

कवि परिचय : यह कविता जिसका शीर्षक " लॉकडाउन " है नवलेश के द्वारा लिखी गई है जो की बिहार के नवादा जिले के रहने वाले हैं | नवलेश को कवितायेँ लिखना बहुत अच्छा लगता है | नवलेश पढ़ने में बहुत अच्छा हैं | 

1 टिप्पणी:

  1. वाह! नवलेश जी के बाल मन में न केवल कविता आकार ले रही है, बल्कि एक गंभीर विचारक भी उभर रहा है जो सामाजिक हलचलों को अपने शब्दों में बखूबी पीरो रहा है।

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