" लॉकडाउन "
लॉकडाउन का फिर से है चान्स,
कोई नहीं खा रहा मुर्गा ,मांस |
गाय , भैस तो खा रहे हैं घास,
इंसा संक्रमित हो रहे कोरोना के साथ |
दुनिया में बीमारी फैली हज़ारो लाख,
कई लोगों की ले ली गई जान |
गाड़ियाँ बंद हो गई है शहरों की,
तकलीफें बढ़ रहीं है इंसानों की |
ख़त्म हो रही इच्छा जीने की,
भर रही है झोली कोरोना वायरस की |
लॉकडाउन का फिर से है चान्स,
कोई नहीं खा रहा मुर्गा ,मांस |
कवि : नवलेश कुमार कक्षा : 6th , अपना घर
कवि परिचय : यह कविता जिसका शीर्षक " लॉकडाउन " है नवलेश के द्वारा लिखी गई है जो की बिहार के नवादा जिले के रहने वाले हैं | नवलेश को कवितायेँ लिखना बहुत अच्छा लगता है | नवलेश पढ़ने में बहुत अच्छा हैं |
वाह! नवलेश जी के बाल मन में न केवल कविता आकार ले रही है, बल्कि एक गंभीर विचारक भी उभर रहा है जो सामाजिक हलचलों को अपने शब्दों में बखूबी पीरो रहा है।
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