शुक्रवार, 8 मई 2020

कविता : काश धरती पर भी होते तारे

" काश धरती पर भी होते तारे "

रात की चाँदनी अँधेरी में लटके तारे,
संसार की जगत से देखो ,लगते प्यारे |
सोच में मैं पड़ जाऊँ ये हैं कितने सारे
इसका जवाब देना मुश्किल है प्यारे |
चाँद की रोशनी , रोशनी देते तारे ,
यूँ ही आकाश में घूमते बनके बिचारे | 
काली अंधियारी की शोभा बढ़ाते,
सुबह होते ही गायब हो जाते | 
कितने सुन्दर लगते है तारे,
बैठ बिस्तर पर नजरें निहारे | 
सोच में पड़ जाता हूँ,
काश धरती पर भी होते तारे | 

कवि : प्रांजुल कुमार , कक्षा : 11th , अपना घर 

कवि परिचय : यह कविता प्रांजुल के द्वारा लिखी गई है जिसका शीर्षक " काश धरती पर भी होते तारे " है | यह कविता प्रांजुल ने कल्पना कर तारों के बारे में लिखी है | प्रांजुल को कवितायेँ लिखना बहुत अच्छा लगता है

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें