मंगलवार, 14 अप्रैल 2020

कविता : घर बैठे -बैठे हो गए परेशां

" घर बैठे -बैठे हो गए परेशां "

घर बैठे -बैठे हो गए परेशां,
क्योंकि बाहर है कोरोना मेहमान  |
कुछ दिन पहले दुकानों में बिकते थे सिगरेट,
उसी दुकानों के सड़कों पर खेलते थे क्रिकेट | 
आज हम नहीं जा पा रहे प्लेग्राउंड,
क्योंकि पूरे देश में लगा है लॉकडाउन | 
पुलिस गाड़ी रुकवा कर मार रहे है लाठी,
इस हरकत को देख भाग जाते बाकी | 
पूरे देश में मचा है हाहाकार,
भूख से तड़प रहे हो गए लाचार | 
दो वक्त की रोटी हो गई मुश्किल,
दुआ करते हैं रोटी हो जाए हाशिल | 
जब ख़त्म होगा कोरोना का प्रकोप,
खुश हो जाएगें खानाबदोश |

 कवि : पिंटू कुमार , कक्षा : 5th , अपना घर

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