शुक्रवार, 27 मार्च 2020

कविता : कोरोना का कहर

" कोरोना का कहर "

कोरोना ने मचा दिया तबाही,
सब परेशां हो गए मेरे भाई | 
कोई खोज नहीं पाया इसकी दवाई,
कुछ परेशां हुए ,कुछ बच न पाई | 
फिर भी कोरोना का पेट न भर पाई | 
कोरोना ने छोड़ा  अपना कहर,
गांव हो या फिर हो कोई शहर | 
घर में पड़े पड़े हो रहे परेशां,
अब क्या करें यही है समाधान | 

कवि : कामता कुमार , :कक्षा  : 8th,  अपना घर

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