शुक्रवार, 20 मार्च 2020

कविता : कल की दुनिया हमारी है

" कल की दुनिया हमारी है "

शहमें हम रह चुके,
गम हम सह चुके |
तेरे बातों में भी गौर किया मैंने
तेरे कहने पर जिंदगी जिया हमने
पर कुछ मिलने की आशा न दिखी मुझको
क्योंकि मैं समझ चूका था
परवाह नहीं है तुझको खुद तो चुका है
 और मेरे सपने छीन रहा है
पर अब आगे नहीं
क्योकि तुमसे कुछ तो हुआ न सही
अब हमारी बारी है
क्योंकि कल की दुनिया हमारी है
तुझे परवाह क्या है
क्योकि तुम तो मील से पैसा ऊगा लोगे
उन पैसों से सुविधा जुटा लोगे
हमारे लिए काले  कण छिड़क जाओगे
 हमारी जिंदगी बर्बाद करोगे
इसीलिए अब हमारी बारी है
क्योंकि कल की दुनिया हमारी है  

कवि :  देवराज कुमार , कक्षा : 9th ,  अपना घर

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