मंगलवार, 21 जनवरी 2020

कविता : लगाए बैठा था आस

" लगाए बैठा था आस "

मुझे अपने आप को जो कहना था,
वो मैंने यूँ ही कह दिया |  
बस मुझे दिखता रहा वो छाया,  
जिसको मैं न ढूँढ पाया | 
अपने लिए कुछ खास,
अभी भी मेरे अंदर है | 
कुछ नया करने की प्यास, 
पर मैं लगाए बैठा था आस | 
जिसपर मुझे खुद ही नहीं था विश्वास | 

कवि : समीर कुमार , कक्षा : 9th , अपना घर 

कवि परिचय : यह कविता समीर के द्वारा लिखी गई है जो प्रयागराज   के रहने वाले हैं  समीर को कवितायेँ लिखने का बहुत शौक है और अभी तक बहुत सी कवितायेँ लिख चुके हैं | समीर एक संगीतकार भी हैं | समीर को  बाँटना बहुत अच्छा लगता है | 

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