मंगलवार, 3 दिसंबर 2019

कविता : खुले आसमान में छत नहीं है

"  खुले आसमान में छत नहीं है "

मैं उस परिवार के बारे में सोचता हूँ 
जिसके पास खाने को कुछ नहीं है | 
खुले आसमान में छत नहीं है,
तड़पकर जिन्दगी जीने में ख़ुशी नहीं है | 
फिर भी जिंदगी जीने की खुशियां है,
लेकिन वे पैसे से कमज़ोर हैं | 
चार वक्त का खाना मिलना मुश्किल है,
पर वे जिंदगी की चुनौतियों को टक्कर देते हैं | 

कवि : विक्रम कुमार , कक्षा : 9th , अपना घर 

कवि परिचय : यह कविता विक्रम के द्वारा लिखी गई है जो की बिहार के रहने वाले हैं | विक्रम को कवितायेँ लिखने का बहुत शौक है | विक्रम कविताओं का शीर्षक समाज को ध्यान में रख कर रखता हैं | विक्रम पढ़ाई में बहुत अच्छे हैं | 

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