बुधवार, 15 मई 2019

कविता : मैं चाहकर भी न रोक सका

" मैं चाहकर भी न रोक सका "

मैं चाहकर भी न रोक सका,
उस मधुर से गीत को |
वह क्या सुर और ताल था,
जिसमें सुरीली आवाज़ थी |
मन मस्त मगन हो जाता है,
जो उस गाना को सुनता है |
उस संगीतकार का क्या तारीफ करूँ,
जिसने उसे रचाया है |
नींद मुझे आ जाती है,
उस संगीत की झंकार से |
मैं चाह भी न रोक सका,|
उस मधुर संगीत को |

नाम : कुलदीप कुमार , कक्षा : 8th , अपना घर

कवि परिचय : यह कविता कुलदीप के द्वारा लिखी गई है जो की छत्तीसगढ़ के निवासी हैं | कुलदीप को कवितायेँ लिखने का बहुत शौक है और बहुत सी कवितायेँ लिखते भी हैं | कुलदीप एक नेवी ऑफिसर बनना चाहते हैं | कुलदीप को खेलना बहुत पसंद है |  

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