रविवार, 28 अप्रैल 2019

कविता : चीजें समझ में आई

" चीजें समझ में आई "

अब मुझे चीजें समझ में आई,
जब दो कदम आगे चलकर देखा |
मैंने पीछे देखा , मैंने देखा की
पापा मुझे मर रहे थे,
हर गलतियों का कसार निकल रहे थे |
तब मुझे गुस्सा आता था,
कभी घर से भाग जाने का मन करता था |
दूसरे बच्चों की किस्मत देखी,
खुद को दोषता था |
तो कभी सब को बुरा भला कहता था,
किस्मत ने भी क्या साथ निभाया
मुझे अपना यार बनाया  |
परिवार से परेशांन होकर
मैंने मरने की ठानी,
पर समय ने गठनी की नै कहानी |
बहुत कठिनाइयों के बाद खड़ा हूँ मैं आज,
जरा आप भी सोचो जिंदगी को |
लिखो डायरियों के पन्नों के बीच,
शायद वो आपको आने वाले समय |
में दे आपको नई संगती | |

कवि : देवराज , कक्षा : 9th , अपना घर


कवि परिचय : यह हैं देवराज जिन्होंने यह कविता लिखी है जो की बिहार के नवादा जिले के निवासी हैं और वर्तमान में अपना घर संस्था में रहकर वह अपनी पढ़ाई कर रहे हैं | देवराज को कवितायेँ लिखने का बहुत शौक है और वह अब तक बहुत सी कवितायेँ लिख चुके हैं | देवराज को हमेशा कुछ नई चीज सिखने की ललक रहती है |  


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें