बुधवार, 7 नवंबर 2018

कविता : छोटा चूहा

" छोटा चूहा "

छोटा चूहा छोटा चूहा,
है मोटा सा छोटा चूहा | 
अपनी पैनी दाँतों से,
पूरे ज़ोर और मेहनत से | 
कपड़े को कुतरता है,
छुपकर झाँकता है खोलों से | 
छोटे है पंजे, मोटा है पेट,
छोटा है घर, पतला सा गेट | 
बिल्ली के  डर से भागता है, 
घर में अपने को शेर समझता है | 

कवि : प्रांजुल कुमार ,कक्षा : 9th  अपना घर 

कवि परिचय : यह कविता प्रांजुल की है  छत्तीसगढ़ के निवासी हैं | प्रांजुल को कवितायेँ लिखना बहुत अच्छा लगता है और अपनी कविता के माध्यम से लोगो को अपनी ओर आकर्षित करने की कोशिश करते हैं | प्रांजुल पढ़ लिखकर  इंजीनियर बनना चाहते हैं | 

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